*भारत के पहले राष्ट्रीय सहकारी युनिवर्सिटी का महत्व*
लेखक: बालासुब्रमण्यम अय्यर
क्षेत्रीय निदेशक, इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस एशिया एंड पैसिफिक
भारत के पहले राष्ट्रीय सहकारी युनिवर्सिटी, त्रिभुवन सहकारी युनिवर्सिटी के लिए विधेयक का संसद में पारित होना भारतीय सहकारी आंदोलन की यात्रा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। इसका 2025 के अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के दौरान संपन्न होना इसके महत्व को और बढ़ाता है। जैसा कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा, यह युनिवर्सिटी “सहकार से समृद्धि” के दृष्टिकोण को साकार करने में एक शक्तिशाली माध्यम बनने के लिए तैयार है।
भारत दुनिया के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन का घर है, जिसमें 800,000 से ज़्यादा सहकारी समितियाँ और 287 मिलियन सदस्य शामिल हैं। रोटी, कपड़ा से लेकर मकान तक की जरूरतों के लिए लोगों के दैनिक जीवन में गहराई से समाहित सहकारी समितियाँ सिर्फ़ आर्थिक संस्थाएँ नहीं हैं; वे समुदाय-संचालित विकास, आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना ने इस क्षेत्र के लिए एक नई राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का संकेत दिया, जिसका उद्देश्य इसकी पहुँच का विस्तार करना, इसकी दक्षता में सुधार करना और इसे समावेशी विकास की आधारशिला के रूप में एकीकृत करना है।
सहकारिता मंत्रालय ने सराहनीय कदम उठाए हैं: 67,390 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए ₹2,516 करोड़ आवंटित करना, 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियों को करने में PACS को सक्षम करने के लिए 32 राज्यों में मॉडल उपनियमों को लागू करना, 2 लाख नई बहुउद्देशीय सहकारी समितियाँ (MPACS) बनाने का लक्ष्य रखना, 1,100 किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को समर्थन देना और 44,000 PACS को सामान्य सेवा केंद्रों (CSC) में बदलना। कर प्रोत्साहन, आसान ऋण और विकेंद्रीकृत भंडारण सुविधा सहकारी समितियों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। बीज, निर्यात और जैविक उत्पादों के लिए तीन नए राष्ट्रीय महासंघों की स्थापना इस बात का संकेत है कि सहकारी समितियों को भारत के विकास के प्रमुख एजेंट के रूप में स्थापित किया जा रहा है।
परन्तु, अपने विस्तार और पहुंच के बावजूद, सहकारी क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण की अवरचना आंशिक, अविकसित और असमान रूप से वितरित है। प्रबंधकीय और प्रशासनिक से लेकर तकनीकी और परिचालन तक योग्य पेशेवरों की मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है। मौजूदा कर्मचारियों और बोर्ड के सदस्यों की क्षमता निर्माण में निवेश करने की आवश्यकता भी महत्वपूर्ण है । इन कर्मचारियों में से कई के पास नियमित प्रशिक्षण या शिक्षा के अवसरों तक पहुंच नहीं है। मानकीकृत पाठ्यक्रम, गुणवत्ता आश्वासन और संस्थागत सामंजस्य के बिना, यह क्षेत्र अपनी क्षमता का पूरी तरह से लाभ नहीं ले सकता है या अपने विकास को बनाए नहीं रख सकता है। सहकारी आंदोलन में नई और युवा पीढ़ियों को आकर्षित करने की भी सख्त जरूरत है – ऐसे व्यक्ति जो न केवल पेशेवर हों बल्कि सहकारी मूल्यों से प्रेरित हों और क्षेत्र में नवाचार करने के लिए आतुर हों। यहां, त्रिभुवन सहकारी युनिवर्सिटी एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकता है: शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए एक केंद्र के रूप में सेवा करके जो नई पीढ़ी के सहकारी नेताओं को बढ़ावा देते हुए सभी स्तरों पर उनकी क्षमता का निर्माण कर सकेगा ।
अमूल मॉडल के वास्तुकार, दूरदर्शी श्री त्रिभुवनदास पटेल के नाम पर, और भारत की डेयरी सहकारी क्रांति के उद्गम स्थल आनंद में स्थित यह युनिवर्सिटी एक प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि है, साथ ही यह एक रणनीतिक हस्तक्षेप भी है। ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आनंद (IRMA) का चयन – एक ऐसा संस्थान जिसने दशकों से सहकारी प्रबंधन शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाई है – इस युनिवर्सिटी की नींव के रूप में व्यावहारिक और प्रेरणादायक दोनों है। आनंद में IRMA को सेंटर ऑफ एक्सेलेंस के रूप में नामित किए जाने के साथ, यह युनिवर्सिटी सहकारी उद्यमों की चुनौतियों और अवसरों का समाधान करने के लिए सुसज्जित पेशेवरों को तैयार करने की एक मजबूत विरासत का निर्माण करेगा।
युनिवर्सिटी का विज़न सिर्फ़ औपचारिक प्रबंधन डिग्री तक सीमित न होकर काफी विस्तृत है । यह प्राथमिक और माध्यमिक सहकारी समितियों के बोर्ड सदस्यों, सहकारी क्षेत्र में कार्य कर रहे कर्मचारियों, और नैतिक, सस्टेनेबल और समावेशी व्यवसाय मॉडल में रुचि रखने वाले युवाओं की नई पीढ़ी तक अपनी पहुँच बढ़ाएगा। इसके लिए, युनिवर्सिटी लचीले शिक्षण मॉड्यूल, प्रमाणन कार्यक्रम, डिग्री कार्यक्रम, डिजिटल पहुँच प्रदान करेगा और क्षेत्र-आधारित ऐसे शोध का जरिया बनेगा, जिनसे स्व-सहायता, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पारस्परिक जिम्मेदारी के सहकारी मूल्यों का लाभ सभी को मिल सकेगा।
त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय ज्ञान मंच के रूप में भी काम कर सकता है, हितधारकों के बीच संवाद को सुविधाजनक बना सकता है, साक्ष्य-आधारित नीतिगत अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है और ग्रामीण वास्तविकताओं के अनुरूप नवाचारों का समर्थन कर सकता है। डेयरी, ऋण, आवास, मत्स्य पालन, कपड़ा आदि जैसे भारत के विविध सहकारी परिदृश्य में, विश्वविद्यालय एक ऐसे केन्द्र के रूप में विकसित होगा जहां, शिक्षा, नीति निर्माता और सहकारिता से जुड़े विशेषज्ञ उन्नयन के नये पथ ईजाद कर सकेंगे ।
वैश्विक स्तर पर, सहकारी शिक्षा सहकारी आंदोलनों की सफलता का आधार रही है। 1844 में रोशडेल पायनियर्स के समय से ही, आचरण के मूल नियमों में मुनाफे का एक हिस्सा शिक्षा के लिए आवंटित करना शामिल था। पाँचवाँ सहकारी सिद्धांत – शिक्षा, प्रशिक्षण और सूचना – आंदोलन का एक मुख्य स्तंभ बना हुआ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सदस्य, नेता और समुदाय सहकारी मॉडल को समझें और उसका पालन करें। यह गहरी जड़ें जमाए बैठी शैक्षिक परंपरा ही है जो सहकारी शासन को बनाए रखती है, नवाचार को बढ़ावा देती है और जवाबदेही को मजबूत करती है।
इस संदर्भ में, त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी केवल एक शैक्षणिक संस्थान से कहीं अधिक होगा – यह सहकारी विकास के लिए एक राष्ट्रीय और वैश्विक ज्ञान केंद्र बन सकता है, एक ऐसा स्थान, जहाँ प्रयोग और नीति का संगम हो और जहां नेतृत्व सीख से प्रेरित हो । नई दिल्ली में आयोजित ICA वैश्विक सहकारी सम्मेलन 2024 में, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत से सहकारी समितियों को एकजुट करने, साझा मंच बनाने, आम चुनौतियों से निपटने और सामूहिक रूप से आगे का रास्ता तय करने में वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी ऐसा ही एक मंच प्रदान करता है – जो संवाद को बढ़ावा देने, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और सहकारी समितियों के बीच दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करने में सक्षम है।
एक ऐसी दुनिया में जहाँ समावेशी, लोकतांत्रिक और सतत विकास सुनिश्चित करते आर्थिक मॉडल की मांग बढ़ रही है, भारत का सहकारी आंदोलन और अब इसका पहला सहकारी यूनिवर्सिटी न केवल प्रेरणा बल्कि दिशा भी प्रदान करता है। विश्वविद्यालय को सुलभ, नवोन्मेषी और प्रभावोत्पादक होना चाहिए, जो आंदोलन के हर स्तर पर नेतृत्व को बढ़ावा दे। नींव रखी जा चुकी है; अब समय आ गया है कि एक ऐसा संस्थान बनाया जाए जो उस दृष्टिकोण के योग्य हो जिसका वह प्रतिनिधित्व करता है – एक ऐसा संस्थान जो आने वाली पीढ़ियों को सहकारिता की अविनाशी शक्ति के माध्यम से शिक्षित, सशक्त और ऊर्जावान बनाएगा – और यह सुनिश्चित करेगा कि सहकारी समितियाँ सभी के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करें।
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