हरियाणा विधान सभा के इतिहास में पहली बार ऐसा प्रशिक्षण, पहले दिन हुए 4 तकनीकी सत्र।

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विधायी प्रारूपण की गुणवत्ता बेहतर होने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और सुदृढ़ होंगी : विस अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण

हरियाणा विधान सभा के इतिहास में पहली बार ऐसा प्रशिक्षण, पहले दिन हुए 4 तकनीकी सत्र।

चंडीगढ़, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक 26 सितम्बर : हरियाणा विधान सभा की ओर से शुक्रवार को चंडीगढ़ के सेक्टर 26 स्थित महात्मा गांधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान (एमजीएसआईपीए) में विधायी प्रारूपण पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले दिन 4 तकनीकी सत्र हुए। इन सत्रों में देश के जाने-माने विधि विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिए। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण, कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष यू.टी. खादर फरीद तथा उपाध्यक्ष डॉ. कृष्ण लाल मिड्ढा उपस्थित रहे। विस अध्यक्ष श्री कल्याण ने हरियाणा विधान सभा के इतिहास में पहली बार हो रहे इस प्रशिक्षण पहल की सराहना करते हुए कहा कि विधायी प्रारूपण की गुणवत्ता बेहतर होने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और अधिक सुदृढ़ होंगी।
हरियाणा विधान सभा एवं हरियाणा सरकार के अधिकारियों के लिए आयोजित पहले सत्र में भारतीय विधि आयोग के सदस्य प्रो. डी.पी. वर्मा ने “विधायी प्रारूपण के मूल नियम और तकनीकें तथा विधायी भाषाओं का महत्व—सरल, द्विभाषी और बहुभाषी प्रारूपण” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि स्पष्ट और सरल भाषा में कानून बनाने से न केवल जनता को समझने में आसानी होती है, बल्कि प्रशासनिक अमल में भी पारदर्शिता आती है। विधान मंडल विधि निर्माण का कार्य करते हैं। उन्हें यह देखना होता है कि जनहित में क्या अपेक्षित है। न्याय पालिका स्थापित विधि के आधार पर कार्य करती है। मूल विधायी नियमों और तकनीक में परस्पर गहरा संबंध है।
दूसरे तकनीकी सत्र में कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष यू.टी. खादर फरीद ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सरकार का कार्य ईश्वरीय कार्य है। कर्नाटक विधान सभा में इस भावना को प्रकट करने वाले स्लोगन लिखवाया गया है। इससे वहां के अधिकारी, कर्मचारी प्रेरित हुए हैं। विधि निर्माण करते समय हमें लोगों के दिलो-दिमाग को समझना जरूरी है। इस प्रक्रिया में जनहित को सर्वोपरि रखना होगा। जनभावना के अनुरूप काननू का निर्माण होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि विधायी प्रारूपण केवल तकनीकी कार्य नहीं है, बल्कि यह जनता और सरकार के बीच विश्वास की सेतु-रेखा है।
तीसरे तकनीकी सत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता साक्षर दुग्गल ने “कृत्रिम बुद्धिमत्ता : विधायी प्रारूपण के लिए एक नया मिश्रित दृष्टिकोण” विषय पर विचार रखे। उन्होंने बताया कि एआई अपराध को बढ़ावा दे सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग विधायी प्रारूपण में भाषा की शुद्धता, तर्कसंगतता और समय की बचत में सहायक हो सकता है। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के छिपे हुए खतरों से भी आगाह किया। कहा कि एआई अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन भविष्य में यह और विकसित होगा, तब हमें इसके प्रति और सचेत रहना होगा।
इसके बाद दिल्ली न्यायिक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बी.टी. कौल ने दो महत्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान दिया। पहले उन्होंने “अधिनियमों की संरचना और प्रारूप : संक्षिप्त शीर्षक, दीर्घ शीर्षक एवं प्रस्तावना” पर प्रकाश डाला और समझाया कि किसी भी विधेयक की प्रस्तावना उसका उद्देश्य स्पष्ट करती है तथा संक्षिप्त व दीर्घ शीर्षक उसके स्वरूप को परिभाषित करते हैं। तत्पश्चात उन्होंने “कानूनों के प्रकार : वैधानिक व्याख्या के सामान्य नियम एवं सिद्धांत” पर बोलते हुए बताया कि कानूनों की सही व्याख्या न केवल न्यायपालिका के लिए आवश्यक है बल्कि विधायिका और प्रशासन के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने हरी अदरक का उदाहरण देते हुए विधान में शब्दों की पेचीदगी का विषय समझाया। उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम में मौजूद प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए।
विधायी प्रारूपण लोकतांत्रिक मूल्यों में विधेयक की आत्मा- राजीव प्रसाद
हरियाणा विधानसभा के सचिव राजीव प्रसाद ने कहा कि हरियाणा के लिए आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। विधायी प्रारूपण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करने वाली हरियाणा विधान सभा देश की पहली विधान सभा है। इसके लिए लोकसभा के संविधान एवं संसदीय अध्ययन संस्थान का भी आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि विधायी प्रारूपण लोकतांत्रिक मूल्यों में विधेयक की आत्मा होती है। इसमें स्पष्टता, सटीकता व जनहितैषी भाव होना चाहिए।

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