सनातन धर्म का वैज्ञानिक स्वरूप ध्यान और योग पर खड़ा है : समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया
मुरथल (प्रमोद कौशिक) 21 दिसंबर : समर्थगुरू धाम मुरथल में भारत के विभिन्न राज्यों से आए सैकड़ों साधकों ने चरैवेति कार्यक्रम श्रद्धा और भक्ति से आदरणीय समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया के सान्निध्य में श्रद्धा पूर्वक किया। 15 दिसंबर से 20 दिसंबर 2025 तक यह कार्यक्रम हुआ। केन्द्रीय संयोजक आचार्य दर्शन जी, आचार्य चेतन जी, आचार्य गोपाल ने साधकों को ध्यान और योग के साथ आध्यात्मिक यात्रा के गूढ़ रहस्य उजागर किए।
समर्थगुरु धाम मुरथल, हरियाणा के मुख्य संस्थापक समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया ने संत संगोष्ठी में साधकों को आत्मा के 12 भाव और परमात्मा के 12 मुख्य नियम पर चर्चा हुई। गोविन्द से प्रेम होना बहुत जरूरी है।
संसार में जीने के लिए मुख्य स्वीकार भाव है। प्रतिकूल से राजी हो जाने की कला किसी भी शास्त्र में नहीं बताई गई है। समर्थगुरु धारा ने खोजा कि प्रतिकूलता के प्रति जागे। यह भी प्रतिकूल हुआ। स्वीकार भाव बढ़ाने से क्रोध से मुक्ति हो सकती है।
विश्व योग दिवस पर समर्थगुरू जी ने ट्विटर के माध्यम से सन्देश दिया कि अध्यात्म, जिसकी नींव पर सनातन धर्म खड़ा है, उस अध्यात्म को अब लोक संस्कृति का हिस्सा बनाना है। सनातन धर्म की वैज्ञानिकता को उजागर करना है,बल्कि सनातन धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को लोक संस्कृति का हिस्सा बनाना है और सनातन धर्म का वैज्ञानिक स्वरूप ध्यान और योग पर खड़ा है।
ध्यान हमेशा बंध आँखों से किया जाता है। निराकार के प्रति विश्रामपूर्ण जो जागरण है वही ध्यान है। ध्यान में कहीं भी स्ट्रेस नहीं होना चाहिए, यह पूरी तरह विश्रामपूर्ण स्थिति है। जब भी ध्यान घटित होगा तो देखोगे की निर्विचार स्थिति हो जाती है, एक निर्विषय अवस्था है।
समर्थगुरु धाम हिमाचल के जोनल कॉर्डिनेटर और श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली (कुरुक्षेत्र) के पीठाधीश ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि समर्थगुरू धाम मुरथल, हरियाणा में आयोजित ध्यान और योग के सभी कार्यक्रम सनातन धर्म के साथ साथ वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है।
अध्यात्म में सभी साधक के लिए जीवित सदगुरू की मुख्य भूमिका है। क्योंकि वहीं अनुभव करवा सकते है और परमात्मा के पथ पर ले जाते है और गोविन्द से मिलाते है।

